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इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी हुई दाखिल

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यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक घोषित करने का मामला

नई दिल्ली (डेस्क)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 22 मार्च के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की गई है, जिसमें ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक घोषित करने वाले हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दिया गया है। यह याचिका अंजुम कादरी और अन्य के द्वारा दायर हुई है।

अंजुम कादरी और अन्य द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने विवेकपूर्ण आदेश पारित करते समय गंभीर त्रुटि की है और उसने बार की सकारात्मक सहायता पर विचार नहीं किया तथा उन मुद्दों के बारे में मनमाना आदेश पारित कर दिया, जिनके बारे में याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष कभी प्रार्थना नहीं की थी। यह याचिका अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव द्वारा तैयार की गई है संजीव मल्होत्रा ​​के माध्यम से दायर की गई है।

ध्यान रहे कि उच्च न्यायालय ने अपने 22 मार्च, 2023 के आदेश में कहा था कि धर्मनिरपेक्ष राज्य को धार्मिक शिक्षा के लिए बोर्ड बनाने या केवल किसी विशेष धर्म और उससे जुड़े दर्शन के लिए स्कूली शिक्षा के लिए बोर्ड स्थापित करने का कोई अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने इस बात पर जोर देते हुए कि बच्चों को धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की शिक्षा प्रदान करना राज्य का सबसे बड़ा कर्तव्य है, स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य भेदभाव नहीं कर सकता और विभिन्न धर्मों के बच्चों को अलग-अलग प्रकार की शिक्षा प्रदान नहीं कर सकता।

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अदालत ने कहा था ‘चूंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य के प्राथमिक कर्तव्यों में से एक है, इसलिए उक्त क्षेत्र में अपनी शक्तियों का प्रयोग करते समय उसे धर्मनिरपेक्ष बने रहना चाहिए। वह किसी विशेष धर्म की शिक्षा, उसके निर्देशों, नुस्खों और दर्शनों के लिए प्रावधान नहीं कर सकता या अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग शिक्षा प्रणाली नहीं बना सकता। राज्य की ओर से ऐसा कोई भी कदम धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा, जो भारत के संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।’

अदालत ने आदेश में कहा था कि ‘राज्य की ओर से ऐसा कदम न केवल असंवैधानिक है, बल्कि धार्मिक आधार पर समाज को अत्यधिक विभाजित करने वाला भी है,’ इस संबंध में न्यायालय ने यह भी कहा था कि यदि राज्य का कोई विधायी अधिनियम संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, जिसका एक मुख्य सिद्धांत धर्मनिरपेक्षता है, तो उसे रद्द किया जाना तय है।‘

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इसके साथ ही न्यायालय ने 2004 के अधिनियम को धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों और भारत के संविधान का उल्लंघन करने वाला पाया। न्यायालय ने यह भी अनुमान लगाया कि मदरसा अधिनियम के तहत दी जा रही शिक्षा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 21ए का उल्लंघन है।

Jarees malik

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