अर्मापुर और नजीराबाद थाने की पुलिस पर गिरी गाज, कोर्ट ने दिए जांच के आदेश
कानपुर में चार साल पहले फर्जी मुठभेड़ दिखाकर दो लोगों को जेल भेजने और पुराने मामले का तमंचा कोर्ट में पेश करने में अर्मापुर और नजीराबाद थाने की पुलिस फंस गई। अपर जिला जज 21 विनय सिंह ने दोनों थानों की पुलिस टीम की विस्तृत व उच्चस्तरीय जांच कराकर तीन माह में रिपोर्ट कोर्ट में भेजने के निर्देश पुलिस कमिश्नर को दिए हैं। साथ ही, यह भी कहा है कि अगर फर्जी मुकदमा दाखिल किया गया है, तो पुलिस टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराकर विवेचना कराई जाए। कोर्ट ने प्रकीर्ण वाद दर्ज कर तीन माह की तारीख लगाने के निर्देश लिपिक को दिए हैं। मुकदमे में कहा गया था कि नजीराबाद थाना प्रभारी ज्ञान सिंह 21 अक्तूबर 2020 को पुलिस टीम के साथ मरियमपुर तिराहे के पास वाहन चेकिंग कर रहे थे।

सोने की चेन व तमंचा दिखाया गया था बरामद
तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कल्याणपुर क्षेत्र के सीटीएस कच्ची बस्ती निवासी अमित और कुंदन दिखे। गाड़ी रोकने का इशारा करने पर भागने लगे। सूचना पर अर्मापुर की पुलिस टीम भी पीछे लग गई। दोनों टीमों ने अर्मापुर केंद्रीय विद्यालय के पास चौराहे पर बदमाशों को घेर लिया तो दोनों ने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी। जवाबी फायरिंग में दोनों बदमाशों के पैर में गोली लगी। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। दोनों के पास से सोने की चेन व तमंचा बरामद दिखाया गया था।
ऐसे सामने आई करतूत
कोर्ट में जब तमंचा लाया गया, तो उसमें पहले से ही काले स्केच पेन से मई 2014 को सीएमएम कोर्ट द्वारा तमंचा सीन किया जाना दर्ज था। बचाव पक्ष ने कागजात पेश कर बताया कि सरकार बनाम ऋषभ श्रीवास्तव के मुकदमे में यह तमंचा दिखाया गया था, जिसमें सीएमएम कोर्ट द्वारा अगस्त 2018 में अभियुक्तों को बरी किया जा चुका है।

कोर्ट में पेश किए गए दस गवाह
यह तमंचा मालखाने में होना चाहिए था और अपील की अवधि खत्म होने के बाद नष्ट हो जाना चाहिए था। यह तमंचा इस मुकदमे के अभियुक्तों के पास से कैसे बरामद हो गया। इसका जवाब किसी के पास नहीं था। अभियोजन की ओर से अपनी कहानी को सही साबित करने के लिए कोर्ट में दस गवाह पेश किए गए, लेकिन कहानी में कई पेच फंसे।
दोषियों पर कार्रवाई करने के निर्देश
पुलिस का झूठ कोर्ट में उजागर हो गया और कोर्ट ने जेल में बंद आरोपी कुंदन को तत्काल रिहा करने के निर्देश दिए। अमित जमानत पर था, उसे भी दोषमुक्त कर दिया गया। लेकिन मालखाने में जमा तमंचा पुलिस टीम के पास कैसे पहुंचा, इसकी जांच कर दोषियों पर कार्रवाई करने के निर्देश भी दे दिए गए।
पुलिस टीम में शामिल इन पर गिर सकती गाज
तत्कालीन नजीराबाद थाना प्रभारी ज्ञान सिंह, उपनिरीक्षक सुरजीत सिंह, कांस्टेबल बाल मुकुंद पटेल, ब्रजेश कुमार, चालक अमित कुमार, तत्कालीन अर्मापुर थाना प्रभारी अजीत कुमार वर्मा, उपनिरीक्षक राजेश कुमार, कांस्टेबल अभिषेक, यशपाल सिंह।
पुलिस की इन गलतियों पर फंसा पेच
- फायरिंग में दोनों बदमाशों को गोली लगी, लेकिन किसी पुलिसकर्मी को चोट नहीं आई।
- मुठभेड़ में गोली चली, लेकिन पुलिस की गाड़ी में न तो गोली का निशान मिला, न ही कोई टूटफूट हुई।
- एक गवाह ने बयान में कहा कि बदमाश ने गोली पीठ पर चलाई। सवाल उठा कि मुठभेड़ के समय पुलिसकर्मी बदमाशों की ओर पीठ करके क्यों खड़ा था।
- मरियमपुर चौराहे पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, लेकिन कोई सीसीटीवी फुटेज कोर्ट में दाखिल नहीं किया गया।
- मुकदमे में बताया गया कि गिरफ्तारी के समय ही फर्द तैयार कर उसकी कॉपी कुंदन को दी गई, लेकिन थाने में दाखिले के समय जनरल डायरी में सिर्फ पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ भी बरामद नहीं दिखाया गया। सवाल उठा कि कॉपी कहां गई।
- सीएमएम कोर्ट ने 25 अगस्त 2018 को एक मुकदमे में फैसला सुुनाया था। अभियुक्त के पास से बरामद दिखाए गए तमंचे में उस मुकदमे का नंबर दर्ज था। तमंंचा अपील की अवधि खत्म होने के बाद नष्ट कर दिया जाना चाहिए था, तो दूसरे मुुकदमे में दोबारा बरामद कैसे हो गया।
- जीडी में थाने से रवानगी दर्ज नहीं की गई।
- घटनास्थल लोकस्थल था, लेकिन किसी को स्वतंत्र गवाह नहीं बनाया गया, जबकि कहा गया कि कैंपस में सुरक्षा गार्ड, चौकीदार व अध्यापक ड्यूटी करने के साथ ही रहते भी थे।